Monday, August 13, 2007

अच्छा हुआ भगतसिंह..राजगुरू..सुखदेव तुम चले गए

अच्छा हुआ तुम चले गए ..भगतसिंह..राजगुरू...सुखदेव
तुम आज़ाद भारत के आम आदमी को देखकर क्या करते



किसे देखते ?

उस हिन्दुस्तानी को जो भ्रष्टाचार में धँसा हुआ है


जो बहन-बेटियों की अस्मत पर हाथ डाल रहा है



जो बेरोजगारी और भुखमरी से जूझ रहा है
जो अपनी तहज़ीब को भूल कर अफ़ीमची बन बैठा है

जो पडौसी का दर्द नहीं बाँटता
जिसने ज़ुबान को हल्का बना रखा है

उसे जो लोन लेकर चादर के बाहर पैर निकालना सीख गया है

जिसे दूसरों के आँसू देखकर पीड़ा नहीं होती

क्या अपने मुल्क के उन नौनिहालों को देखना पसंद करते जों

कंधे पर बस्ते बोझ उठा कर मज़दूर की तरह घर लौटते हैं



या उन्हें जों बरतन मांज रहे हैं

और धो रहे हैं कप-बसी और लगा रहे हैं ढा़बे में झाड़ू

क्या उन बूढ़े माँ-बाप को देखकर खु़श होते

जो दो दो बेटों के होने के बावजूद वृध्दाश्रम में रहने को मजबूर हैं

मिलना चाहते उस मास्टर से जो हर लम्हा अपमानित हो रहा है
ये हिन्दुस्तानी बेशर्म हो गए मेरे प्यारे भगत,राजगुरू,सुखदेव



ये महान भारतवासी सैंसेक्स के उतार-चढाव पर घंटों बतिया लेंगे

लेकिन शहीदों की दास्तान सुनने - सुनाने में शर्माएंगे

शराब और शबाब में डूबी पार्टियों में पूरी पूरी रात नाचते रहेंगे

लेकिन तिरंगे और राष्ट्रगीत के सम्मान में तीन मिनट खडे नहीं रह सकेंगे


क्या देखना चाहते उन शहरों को जो माँल कल्चर में बौरा गए हैं

देखना चाहोगे उन नौजवानों से जो क्लब्स में बैठे शराबख़ोरी कर रहे हैं

चाहते हो उन बेटियों से मिलना जो देह उघाड़ने को अपना सौभाग्य मान रहीं

देखना चाहते उन सड़कों को जिन पर से हज़ारों पेड़ विकास के नाम पर काट दिये गये हैं
क्या देखना चाहते हो इस देश की उस व्यवस्था को जो ग़रीब के लिये फ़राहम नहीं

देखना चाहते उन योजनाओं को जो बनती ग़रीबों के लिये हैं और जिनके फ़ायदे उठाते हैं रईस


अच्छा हुआ भगतसिंह...राजगुरू ...सुखदेव

हँसते हँसते तुम झूल गए फ़ाँसी के फ़ंदे पर



भारत का सूरते हाल देखकर तुम जीते जी मर जाते
साठ साल का बूढा़ होकर ये चिट्ठी लिखने को मजबूर हूँ..

ये वही भारत है जिसके लिये तुम सब ने भरी जवानी में दीं शहादतें,क़ुरबानियाँ



मिला क्या तुम्हे ...तुम्हारे घर वालों को
अच्छा हुआ ये दिन देखने को नहीं रहे भगतसिंह...राजगुरू...सुखदेव

ना कोई पद्मभूषण...ना कोई भारत-रत्न

अब तो आँखों का पानी भी सूख गया है

क्योंकि नज़रों के लिहाज़ ही मर गए

अच्छा हुआ तुम चले गए...

भगतसिंह..राजगुरू...ु

2 comments:

Udan Tashtari said...

सच में: अच्छा हुआ जो चले गये. ऐसे दिन देखने से तो बेहतर है.

Yunus Khan said...

आओ फिर से आओ सुखदेव भगतसिंह राजगुरू
इस बार बड़ी क्रांति करेंगे
इस बार समर्पण नहीं करेंगे
इस बार विप्‍लव ला देंगे