Wednesday, April 2, 2008

समीक्षकजी ! ये एक ख़तरनाक नाटक की शुरूआत है …।


अभिनेता का अभिनय
जायज़ है
लेकिन प्रेक्षक का ?
……एक ख़तरा

प्रेक्षक कथा सूत्र का
संवाहक ज़रूर है
लेकिन सूत्रधार नहीं

प्रेक्षक ने दम भर लिया
यदि कथानक को
गति देने का तो
नाटक क्या ख़ाक होगा

अभिनेता और प्रेक्षक के
बीच पोशीदा
लक्ष्मण रेखा को
लील गए हैं हालात

अभिनेता का हक़ है
भूमिका बदलना
लेकिन प्रेक्षक भी
विचलित है ऐसा करने को

अभिनय कर्म है अभिनेता का
प्रेक्षक का नहीं ;
सभागार में प्रेक्षक का अभिनेता
के रूप में भेस बदलना
एक ख़तरनाक नाटक की शुरूआत है

समीक्षकजी ……सुन रहे हैं आप ?
-संजय पटेल

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